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    Home»offbeat»हर व्यक्ति साल में 94 किलो करता है भोजन की बर्बादी, कितनी बड़ी है भारत के लिए चुनौती
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    हर व्यक्ति साल में 94 किलो करता है भोजन की बर्बादी, कितनी बड़ी है भारत के लिए चुनौती

    todaygujaratinewsBy todaygujaratinews22/12/2022Updated:29/11/2023No Comments12 Mins Read
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    टुडे गुजराती न्यूज  (ऑनलाइन डेस्क)

    food wastage

    खाने की बर्बादी एक वैश्विक समस्या है, इसे सिर्फ विकसित देशों या विकासशील देशों की समस्या नहीं माना जा सकता.  दुनिया में हम जितना भोजन बर्बाद (Food Wastage) करते हैं, उससे हर साल 126 करोड़ लोगों को खाना खिलाया जा सकता है.  इसमें खेत से कटाई  के बाद होने वाले अनाजों का नुकसान से लेकर बने बनाए भोजन की बर्बादी भी शामिल है.  

    खाने की बर्बादी एक ऐसी समस्या है, जिसका दंश भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देश झेल रहे हैं. ये तब और भी हास्यास्पद हो जाता है, जब दुनियाभर में करोड़ो लोग भूखे सोने को मजबूर हैं. भारत में भी ये समस्या लगातार गंभीर होते जा रही है. अब केंद्र सरकार ने इस समस्या पर काबू पाने के लिए राज्यों से स्कूली पाठ्यक्रम में भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए अलग से एक अध्याय जोड़ने को कहा है.  

    राज्यों में जागरूकता मुहिम शुरू हो

    अब खाने की बर्बादी को रोकने के लिए भारत सरकार ने सभी राज्यों को जागरूकता मुहिम शुरू करने का निर्देश दिया है.   इसके तहत केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को स्कूल के पाठ्यक्रम में फूड वेस्टेज  की रोकथाम को लेकर एक चैप्टर शुरू करने को कहा है. केंद्र सरकार का मानना है कि  सिलेबस में प्रिवेंशन ऑफ फूड वेस्टेज (prevention of food wastage) नाम से अध्याय शुरू करने से स्कूली छात्रों में खाने के सामानों की बर्बादी को रोकने को लेकर जागरूकता आएगी.

    प्रिवेंशन ऑफ फूड वेस्टेज के नाम से चैप्टर

    फूड वेस्टेज की रोकथाम को स्कूली सिलेबस में जोड़ने से जुड़ी जानकारी संसद में दी गई है. उपभोक्‍ता कार्य, खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में लिखित जवाब में ये जानकारी दी है. उन्होंने अपने जवाब में कहा है कि भोजन की बर्बादी रोकने के लिए लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है और सरकार ने समय-समय पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए इसको लेकर प्रचार अभियान चलाया भी है. केंद्र सरकार का मानना है कि स्कूली सिलेबस में भोजन की बर्बादी की रोकथाम पर चैप्टर  शामिल करने से युवा छात्रों को इस विषय पर संवेदनशील बनाया जा सकेगा.   

    भारत के लिए है बड़ी चुनौती

    सवाल उठता है कि क्या सिर्फ स्कूली पाठ्यक्रम में अलग से चैप्टर जोड़कर इस समस्या से लड़ा जा सकता है. इसके लिए ये समझना होगा कि भारत के लिए खगाने की बर्बादी कितनी बड़ी चुनौती है. भोजन बर्बादी के मामले में भारत के लिए अच्छी तस्वीर निकल कर नहीं आती है. भारत में भोजन की बर्बादी को लेकर यूएनईपी के फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट के आकलन से निकलने वाले आंकड़े चौंकाने वाले हैं.  

    भारत में हर व्यक्ति औसतन सालाना 94 किलोग्राम भोजन की बर्बादी करता है. इसमें  परिवार में होने वाली बर्बादी के साथ-साथ खुदरा दुकानदारों और फूड सर्विसेज में होने वाली बर्बादी भी शामिल है.

    अगर अलग-अलग बात करें तो परिवार में  हर व्यक्ति सालाना औसतन 50 किलो भोजन की बर्बादी सालाना कर रहा है. इसमें रिटेल फूड में औसतन हर व्यक्ति 16 किलो और फूड सर्विसेज में हर शख्स औसतन 28 किलोग्राम भोजन सालाना बर्बाद कर रहा है. 

     भारत में हर साल 12.8 करोड़ टन भोजन बर्बाद होता है. इनमें परिवार में होने वाली बर्बादी के साथ-साथ रिटेल और फूड सर्विसेज में होने वाली बर्बादी भी शामिल है. भारत से ज्यादा सालाना भोजन सिर्फ चीन में बर्बाद होता है. इस मामले में अमेरिका तीसरे पायदान पर है. 

    सिर्फ घर परिवार में होने वाली बर्बादी की बात करें, तो हम भारतीय सालाना 6.88 करोड़ टन घरों में भोजन की बर्बादी कर देते हैं. वहीं  खुदरा दुकानों में फूड वेस्ट 2.14 करोड़ टन सालाना और फूड सर्विसेज से जुड़े भोजन की बर्बादी सालाना  3.78 करोड़ टन है. 

    भारत में सबसे ज्यादा खाना घरों में बर्बाद होता है. उसके बाद होटलों और खाना खिलाने वाली सर्विसेज के जरिए भोजन की बर्बादी होती है. भोजन बर्बादी के मामले में आखिरी नंबर खुदरा दुकानों का है.  

    ये एक कटु सत्य है कि जहां भारत में करोड़ों लोग भूख से तरस रहे हैं. वहीं यहां करोड़ों टन भोजन की बर्बादी भी हो रही है. आज से 5 साल पहले 2017 में नेशनल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट से ये खुलासा हुआ था कि देश में 19 करोड़ लोग रात में भूखे पेट सोने को मजबूर होते हैं. ये भी सच्चाई है कि हमारे यहां खाद्य उत्पाद का 40 फीसदी बर्बाद हो जाता है. कुछ साल पहले ही हम 92 हजार करोड़ रुपये के मूल्य का भोजन कूड़े के ढेर में फेंक देते थे. 

    सेव फूड, शेयर फूड, शेयर जॉय

    भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI)ने  भोजन की बर्बादी को रोकने और सरप्लस फूड के वितरण को बढ़ावा देने के लिए दिसंबर 2017 में एक सामाजिक पहल की दिशा में आगे बढ़ा था. इसे सेव फूड, शेयर फूड, शेयर जॉय (Save Food, Share Food, Share Joy)नाम दिया गया है. इस पहल में अलग-अलग खाद्य वितरण एजेंसियों और दूसरे स्टेकहोल्डर को शामिल करते हुए भोजन की बर्बादी को कम करके जरुरतमंदों तक खाना पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया. इस अभियान का मकसद  भोजन की बर्बादी रोकने और खाने को जरुरतमंदों के बीच साझा करने को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाना था. 

    बांटा जाने वाला भोजन रहे सुरक्षित 

    FSSAI के पास खाने की बर्बादी को रोकने के साथ ही सरप्लस भोजन को सुरक्षित रखने की भी जिम्मेदारी थी. इसको ध्यान में रखते हुए FSSAI ने  जुलाई 2019 में एक बड़ा कदम उठाया. इसके तहत प्राधिकरण ने  खाद्य सुरक्षा और मानक (अधिशेष भोजन की वसूली और वितरण) विनियम, 2019 को भी अधिसूचित कर दिया.  इसे अंग्रेजी में  Food Safety and Standards (Recovery and Distribution of Surplus food) Regulation, 2019 के नाम से जानते हैं. सरल शब्दों में कहे तो इस रेग्युलेशन के जरिए FSSAI अलग-अलग प्रतिष्ठानों और कारोबारों में भोजन की बर्बादी रोकने और भोजन दान करने को प्रोत्साहित करने के लिए नियम बना दिए.  खाद्य कारोबार करने वाले सभी लोगों  के लिए इन नियमों का जुलाई 2020 से अमल अनिवार्य कर दिया गया.  इसका एक और मकसद था कि जो भी भोजन बांटे जाएं, वो स्वास्थ्य के नजरिए से सुरक्षित हों. 

    समाधान के लिए लंबा सफर तय करना पड़ेगा

    भारत में भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए स्कूल चैप्टर और FSSAI की ओर से उठाए जा रहे कदम ही काफी नहीं हैं. इसके लिए आम लोगों में जागरूकता और संवेदनशीलता का होना भी बेहद जरूरी है. 2018 में केंद्र सरकार की ओर से शुरू हुआ Eat Right India Movement भी भोजन की बर्बादी रोकने और जरुरतमंदों तक पौष्टिक खाना पहुंचाने की दिशा में एक अच्छी पहल है. ‘सही भोजन बेहतर जीवन’ इस मूवमेंट का टैगलाइन रखा गया.  जब 7 जून 2019 को पहली बार विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया गया, उस वक्त भारत सरकार ने कम खाओ, हेल्दी खाओ  मुहिम को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया. ये सभी पहल भोजन की बर्बादी को रोकने में तभी कारगर साबित हो सकते हैं, जब इसके बारे में लोगों तक ज्यादा से ज्यादा जानकारी पहुंचे.

    समारोहों में बर्बादी रोकने पर हो ज़ोर

    घरों में हम सब बने बनाए भोजन की बर्बादी करते ही हैं. शादी-विवाह, जन्मदिन, त्यौहारों या फिर दूसरे समारोहों में आयोजन स्थल या होटलों में बड़े पैमाने पर भोजन की बर्बादी देखने को मिलती है. भोजन की बर्बादी की चुनौती से निपटने के लिए इस पहलू पर भी ख़ास ध्यान देना होगा. देश की शीर्ष अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दिया था कि ऐसी जगहों पर भोजन की बर्बादी रोकने के लिए उपाय किए जाने चाहिए.

    व्यक्तिगत स्तर पर भी कोशिश का होगा असर

    हम अपनी सोच और जीवनशैली में बदलाव लाकर भी भोजन की बर्बादी को बड़े पैमाने पर रोक सकते हैं. अन्न की बर्बादी कितना बड़ा नुकसान है, उसके प्रति संवेदनशील बनें और अपने आसपास इसको लेकर लोगों को जागरूक बनाएं.बाहर खाने के वक्त शुरुआत में जरुरत के मुताबिक ही खाना लें.  थोक में बड़ी मात्रा  खाने-पीने के सामानों को खरीदने से बचें.  घर में खाना उतना ही बनाएं, जिसका खराब होने से पहले ही उपभोग हो सके. ये कुछ छोटे-छोटे उपाय हैं..जिसके तहत हमें सिर्फ अपनी आदतों में मामूली बदलाव करना है. ये मामूली बदलाव ही भोजन की बर्बादी को रोकने में बेहद कारगर और बड़े हथियार साबित हो सकते हैं. भोजन की बर्बादी को रोकने के सामाजिक चेतना बेहद जरूरी है और इस चेतना के विकास में धार्मिक और स्वयंसेवी संगठनों की बड़ी भूमिका हो सकती है.

    भोजन की बर्बादी है वैश्विक समस्या

    वैश्विक स्तर पर भोजन के नुकसान और बर्बादी का हाल और भी बदतर है. यूएनईपी के फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट से पता चलता है कि भोजन की बर्बादी की समस्या से समय रहते नहीं निपटा गया. तो आने वाले वक्त में भूखमरी की समस्या और विकराल होते जाएगी.  वैश्विक स्तर पर आंकड़ों के विश्लेषण से कुछ चौंकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आते हैं. 

    वैश्विक स्तर पर कुल खाद्य उत्पादन का 17 फीसदी हिस्सा सालाना बर्बाद हो जाता है. 

    दुनियाभर में 2019 में  931 मिलियन (93.1 करोड़ )  टन भोजन बर्बाद हो गया था. इसमें घरों, खुदरा विक्रेताओं, रेस्तरां और दूसरे फूड सर्विसेज को बेचे गए भोजन शामिल हैं. 

    दुनियाभर में बर्बाद हुए 93 करोड़ टन भोजन में से 60 फीसदी घरों में बर्बाद हुआ था. 

    दुनियाभर में 2019 में परिवार या घरों में 558 मिलियन (55.8 करोड़ ) टन भोजन बर्बाद हुए हैं. 

    अगर घरों के साथ होटल, रेस्तरां, खुदरा दुकानदारों को भी जोड़ दें तो वैश्विक स्तर पर हर व्यक्ति औसतन 121 किलोग्राम भोजन की बर्बादी कर रहा है. 

    वैश्विक स्तर पर घर या परिवार में सालाना औसतन हर व्यक्ति 74 किलोग्राम भोजन बर्बाद कर रहा है. 

    अमीर देशों के घरों में सालाना  79 किलोग्राम,  अपर मिडिल इनकम वाले देशों में 76 किलोग्राम भोजन हर व्यक्ति बर्बाद कर रहा है. लोअर मिडिल इनकम वाले देशों के घरों में तो सालाना हर शख्स औसतन 91 किलोग्राम तक भोजन बर्बाद कर रहा है. 

    दुनियाभर में 2020 में 81 करोड़ से ज्यादा लोग भूख से पीड़ित थे.  2019 में 69 करोड़ लोग भूख से तरस रहे थे. कोविड महामारी की वजह से इसमें तेजी से इजाफा हुआ.  दुनिया में तीन अरब लोगों को अच्छा खाना (Healthy Diet) नहीं मिल पा रहा है.  

    2021 में भूखमरी की समस्या तेजी से बढ़ी

    2021 में दुनियाभर में भुखमरी से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़कर करीब 83 करोड़  हो गई है. 2019 से तुलना करें तो भूखों की श्रेणी में 2021 में 14 करोड़ और जुड़ गए हैं.   दुनियाभर में तीन अरब से ज्यादा लोगों को हेल्दी डाइट नहीं मिल पा रहा है.  स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशिन इन द वर्ल्ड विषय पर खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की ताजा रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है. भूखमरी पर इस भयावह तस्वीर से साफ है कि खाने की बर्बादी की समस्या दुनिया के लिए कितनी महंगी साबित हो रही है. 

    सालाना भोजन का 17 प्रतिशत बर्बाद होता है

    खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चरल रिपोर्ट के मुताबिक  दुनिया का करीब 14 प्रतिशत भोजन (फसल) कटाई के बाद और दुकानों तक पहुंचने के पहले नष्ट हो जाता है. यानी 400 अरब डॉलर मूल्य का भोजन कटाई और दुकान तक पहुंचने के बीच ही बर्बाद हो जाते हैं. यूनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट प्रोग्राम यानी UNEP की फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर सालाना हमारे भोजन का 17 प्रतिशत बर्बाद होता है. 

    गरीब देशों में भी खाने की बर्बादी है समस्या

    पहले ऐसी धारणा थी कि भोजन बर्बादी का संबंध अमीर या विकसित देशों से ज्यादा है. संयुक्त राष्ट्र के आकलन ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है. विकसित देशों के मुकाबले पश्चिम एशिया और अफ्रीकी देशों में सालाला प्रति व्यक्ति खाने की बर्बादी ज्यादा है. 

    जलवायु संकट को मिल रहा बढ़ावा

    आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भोजन की बर्बादी का संबंध जलवायु परिवर्तन से भी है. भोजन की बर्बादी  ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 8 से 10 प्रतिशत हिस्सा के लिए बर्बाद हुए भोजन ही  जिम्मेदार है. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन  सूखे और बाढ़ जैसे हालात के लिए भी जिम्मेदार हैं. स्थिचि इतने बुरे हैं कि अगर भोजन के नुकसान और बर्बादी को एक देश माना जाए, तो ये ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है. इससे फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, साथ ही फसलों की पोषण गुणवत्ता भी कम होती है और फूड चेन भी प्रभावित होता है.

    प्राकृतिक संसाधनों का हो बेहतर उपयोग

    सतत एग्रीफूड सिस्टम (sustainable agrifood systems) बनाने के लिए भोजन के नुकसान और बर्बादी को  प्राथमिकता देने की जरूरत है. इससे प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा. साथ ही खाद्य सुरक्षा और पोषण भी सुनिश्चित होगा. संयुक्त राष्ट्र (United Nations)का भी मानना है कि भोजन की बर्बादी को आधा करना और भोजन के नुकसान को कम करना  जलवायु और खाद्य संकट को दूर करने के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण  है.  खाने की बर्बादी कम होने से संसाधन तो बचेंगे ही, पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा. 

    कई स्तरों पर जागरूकता अभियान की जरुरत 

    खाने के सामानों की बर्बादी कई तरह से होती है. खाद्य पदार्थों के बर्बादी के दो पैमाने है. खेत में कटाई से खुदरा दुकानदारों तक पहुंचने के बीच जो खाद्य पदार्थों की हानि होती है, उसे फूड लॉस या भोजन का नुकसान कहते हैं. वहीं खुदरा से उपभोक्ताओं के चेन में जो भोजन की हानि होती है उसे भोजन की बर्बादी या फूड वेस्टेज कहा जाता है.  खाने की बर्बादी को रोकने के लिए इन सबके प्रति भी जागरुकता बेहद जरूरी है.  निजी स्तर पर कोशिश के साथ ही सरकारी स्तर पर व्यवस्थित प्रयास के जरिए इस चुनौती से निपटा जा सकता है. मौजूदा वक्त में सोशल मीडिया कैंपेन की इसमें ख़ास भूमिका हो सकती है. 

    2030 तक भोजन की बर्बादी को आधा करना है

    बर्बाद या नुकसान हुए भोजन को खाद में बदला जा सकता है. इनसे बायोगैस का का उत्पादन किया जा सकता है, जिससे हानिकारण मीथेन उत्सर्जन (methane emissions) से बचा जा सकता है. भोजन बर्बादी की चुनौती इतनी बड़ी है कि इसे सतत विकास के 2030 एजेंडे में भी जगह दी गई है. इसके तहत 2030 तक प्रति व्यक्ति भोजन बर्बादी को आधा करने का लक्ष्य रखा गया है. कटाई के बाद होने वाले अनाजों के नुकसान को 2030 तक 25 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया है. 

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